बचपन में टेलीविज़न पर रामायण या महाभारत देखते थे, उस में युद्ध के कई दृश्य देखकर मन में सवाल उठता था कि धनुष्य से निकले हुए बाण से किसी को घायल भी करते थे तो आकाश से फूलों की मालाए पहनाई जाती थी, पुष्पों की वर्षा भी होती थी | यह सब कैसे हो सकता है ? कहते है धनुष्य से निकला हुआ तीर फिर भी वापस आ सकता है लेकिन मुख से निकला हुआ शब्द कभी वापस नहीं आ सकता | हमारे बोल का अपने और औरों के जीवन पर बड़ा गहरा असर पड़ता है | कहते है “ हमारी वाणी किसी को तख़्त पर तो किसी को तख्ते पर भी चढ़ा सकती है ” |
शरीर के हर अंग का अपना-अपना महत्व है | हमारे होठों की बनावट को थोड़ा ध्यान से देखे तो वह धनुष्यबाण की तरह है | जब यह मुख खुलता है तो इससे तीर की तरह घायल करने वाले शब्द रूपी बाण भी निकल सकते है या शब्दों रूपी पुष्प भी निकल सकते है | बुद्धी रूपी तरकश में जो कुछ भरा हुआ होगा, उसी का इस्तमाल इस मुख के द्वारा अर्थात ही धनुष्य से करते है | युद्ध में आपने देखा होगा अलग-अलग किसम के तीर हुआ करते थे | कोई आग के गोले की तरह, कोई त्रिशूल की तरह, कभी-कभी तो एक ही तीर छोड़ा जाता था लेकिन उसी तीर के जैसे 5-10 तीर और निकलते थे | हमारे बोल का भी ऐसे ही है | हमारे बोल कभी किसी को जलानेवाले, किसी को बिल्कुल नीचे गिरानेवाले , और ऐसा भी कभी हम बोल देते है जो एक ही लाइन में दस बातें सुना देते है |
कहते है, ‘ मीठी वाणी बोल रे मनवा ……’ वाणी का माधुर्य और चातुर्य हमारे चरित्र को बनता है | मनुष्य अंदर से कैसा है वह उसके बोल से पता चलता है | वाणी से भी मनुष्य की पहचान होती है | शब्दों का प्रयोग किस भावना से या उद्देश्य से किया जाता है, उस अनुसार उसे नाम दिया जाता है | किसी महंत की वाणी जो जीवन में मार्गदर्शन कराती है उसे गुरुवाणी कहा जाता है | किसी शब्दों में बहुत मिठास भरी होती है तो उसे मधुर वाणी कहा जाता है| कोई किसी के लिए कटाक्ष भरे बोल बोलता है तो उसे कटू वचन कहे जाते है |
कभी हम अपने को देखे कि हमारे शब्द या वचन किस रिती से प्रयोग होते है | इन शब्दों में कौन से भाव भरे हुए होते है ? भावना और शब्द इनका संतुलन बहुत जरुरी है क्यों कि वही शब्द तीर के समान प्रभाव डालते है जिन में वैसी भावना भरी हुई हो | मान लो आप किसी को अच्छे और बुरे की समझ दे रहे है, सामने वाला हमारी बातों को सुन रहा है, लेकिन अगर हम समझाते हुए उस व्यक्ति के लिए सोच रहे है कि “ ये तो कभी सुधरने वाला नहीं है ” तो हमारे बोलने का उस पर कोई असर नहीं होगा | वह हाँ – हाँ कहकर वही करेगा जो उसे सही लग रहा है | आपने कई महात्माओं के जीवन चरित्रो में पढ़ा होगा कि उनके मुख के निकले हुए कुछ वचनों को सुनकर चोरों ने भी अपनी बुराइयों को त्याग जीवन को नयी दिशा दी | ऐसा क्या था उनकी वाणी में जो कईयों के जीवन परिवर्तन के निमित्त बने | शब्द और भावनाओं का मेल इतना शक्तिशाली था कि हृदय से निकले हुए बोल सामने वालों के हृदय को छु जाते थे | उसी से बड़े परिवर्तन हुए |
हम भी मन और वचन दोनों में समरसता लाए जो विचारों में है वही बोल में लाने का प्रयास करें | क्यों कि आज हमारा दुहेरी व्यक्तित्व बनता जा रहा है | सोच में कुछ और है, बोलते कुछ और है| अगर सोच में गलत है फिर भी बोल में मिठास ला रहे है क्यों कि सामने वाले को अच्छा लगता है | लेकिन अगर वह गलत है, तो शुद्ध भावना से उसे कहने में कोई हर्जा नहीं है लेकिन ऐसा न करना माना हम अपने से और औरों से ठगी कर रहे है | सत्य कड़वा नहीं होता लेकिन उसे बताने का तरीका कड़वा न बनाए | उसे मीठे अंदाज में भी कहा जा सकता है |
हम अपने कर्मों पर जैसे ध्यान रखते है, ऐसे ही सोच और बोल पर भी ध्यान रखे | कर्मों से दुःख देना पाप मानते है वैसे ही सोच और बोल से भी हम औरों को दुःख देते है, उस से भी पाप कर्म बनते है इसलिए सोच-समझकर बोल का भी इस्तमाल करे |
‘ कम बोलो, धीरे बोलो और मीठा बोलो ’ इस स्लोगन को सदा याद रखे | ‘बोलो’ इस शब्द में भी रहस्य छिपा है | ‘बो + लो’ शब्दों से भी कर्म रूपी बीज बोते है | ‘ जो बोते है वही पाते है ’ अगर हम मीठे या कटू वचन बोलते है तो प्रतिक्रिया में हमें वही प्राप्त होता है | इसलिए जो हम औरों से अपेक्षा करते है, कि यह मेरे से प्यार से बोले, शान्ति से बोले, तो हमें सर्व प्रथम वो उन्हें देना होगा, तो ही तो वह हमें रिटर्न में मिलेगा |